जीवामृत क्या है? जीवामृत बनाने की सबसे अच्छी विधि

किसान भाइयों आज हमे जीवामृत से खेती करने की बहुत ही आवश्यकता है। क्योंकि हरितक्रांति के बाद से ही भारतीय खेती मे जिस प्रकार रसायनिक उर्वरको का आंख बंद कर के बड़ी भारी मात्रा मे प्रयोग हुआ है उसने हमारी भूमि की संरचना ही बदल कर रखदी है। आज बहुत ही तेजी से खेती योग्य भूमि बंजर भूमि में बदलती जा रही है। और लाखों करोड़ रुपया किसानों का रासायनिक उर्वरकों पर खर्च हो रहा है। खेतो मे लगातार रासायनिक उर्वको के प्रयोग से फसल की पैदावार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।


अधिक खर्च और कम उत्पादन के कारण ही किसान भाई कर्ज से दबे हुए है। साथ ही हमारे खाने से होकर ये जहर हमारे स्वास्थ्य को भी खराब कर रहा है।

इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। जैविक खेती के अंतर्गत किसानों के पास उपलब्ध संसाधनों से ही कहती करके अधिक पैदावार लेना है। जैसे रासायनिक उर्वरकों की जगह अधिक से अधिक जैविक खादों का प्रयोग करना। जिनमे कम्पोस्ट खाद, वर्मीकम्पोस्ट, जीवामृत,गोमूत्र आदि का प्रयोग करना है।
इस लेख में हम जीवामृत के बारे में जानकारी दे रहे है। जिसे किसान भाई कम लागत मे अपने ही घर पर बनाकर खेतो मे प्रयोग करके अधिक लाभ ले सकते है।

जीवामृत क्या है?
किसान भाईयो जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है। जिसे गोबर के साथ पानी मे कई और पदार्थ मिलाकर तैयार किया जाता है। जो पौधों की वृद्धि और विकास में सहायक है। यह पौधों की विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षा करता है तथा पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है जिससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल से बहुत ही अच्छी पैदावार मिलती है। जीवामृत को किसान भाई दो रूपों में बना सकते है।
1  तरल जीवामृत 
2  घन जीवामृत

तरल जीवामृत बनाने की विधि
किसान भाईयो तरल जीवामृत बनाने के लिए हमे निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होती है।

गाय का 10 किलो गोबर (देशी बैल या भैंस का भी ले सकते हैं)
2- 10 लीटर गौमूत्र (देशी बैल या भैंस का भी ले सकते हैं)
3- पुराना सड़ा हुआ गुड़ 1 किलो (नया गुड़ भी ले सकते है) अगर गुड़ न मिले तो 4 लीटर गन्ने का रस भी प्रयोग कर सकते है।
4- किसी भी प्रकार की दाल का 1 किलो आटा (मूंग, उर्द, अरहर, चना आदि का आटा)
5- बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी 1 किलो इसे सजीव मिट्टी भी कहते है।अगर पीपल या बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी न मिले तो ऐसे खेत की मिट्टी प्रयोग की जा सकती है जिसमें कीटनाशक न डाले गए हों।
6- 200 लीटर पानी
7- एक बड़ा पात्र (ड्रम आदि)
नोट:
बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी सबसे अच्छी होती है क्योंकि बरगद और पीपल के पेड़ हर समय ऑक्सीजन देने वाले पेड़ हैं और ज्यादा ऑक्सीजन देने वाले पेड़  के नीचे जीवाणुओं की संख्या अधिक पाई जाती है। ये जीवाणु खेत के लिए बहुत ही आवश्यक एवं लाभदायक हैं।
ये सब सामग्री इकट्ठा करके सबसे पहले 10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर, 10 लीटर देशी गौमूत्र, 1 किलोग्राम पुराना सड़ा हुआ गुड़ या 4 लीटर गन्ने का रस, 1 किलोग्राम किसी भी दाल का आटा, 1 किलोग्राम सजीव मिट्टी एवं 200 लीटर पानी को एक मिट्टी के मटके या प्लास्टिक के ड्रम में डालकर किसी डंडे की सहायता से इस मिश्रण को अच्छी तरह हिलाये जिससे ये पूरी तरह से मिक्स हो जाये। अब इस मटके या ड्रम को ढक कर छांव मे रखदे। इस मिश्रण पर सीधी धूप नही पड़नी चाहिए।
अगले दिन इस मिश्रण को फिर से किसी लकड़ी की सहायता से हिलाए, 6 से 7 दिनों तक इसी कार्य को करते रहे। लगभग 7 दिन के बाद जीवामृत उपयोग के लिए बनकर तैयार हो जायेगा। यह 200 लीटर जीवामृत एक एकड़ भूमि के लिये पर्याप्त है।
किसान भाईयो विशेषज्ञ बताते है कि देशी गाय के 1 ग्राम गोबर में लगभग 500 करोड़ जीवाणु होते हैं। जब हम जीवामृत बनाने के लिए 200 लीटर पानी में 10 किलो गोबर डालते हैं तो लगभग 50 लाख करोड़ जीवाणु इस पानी मे डालते हैं  जीवामृत बनते समय हर 20 मिनट में उनकी संख्या दोगुनी हो जाती है। जीवामृत जब हम 7 दिन तक किण्वन के लिए रखते हैं तो उनकी संख्या अरबों-खरबों हो जाती है। जब हम जीवामृत भूमि में पानी के साथ डालते हैं, तब भूमि में ये सूक्ष्म जीव अपने कार्य में लग जाते हैं तथा पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं।

तरल जीवामृत को कैसे प्रयोग करे?
किसान भाई इस तरल जीवामृत को कई प्रकार से अपने खेतों मे प्रयोग कर सकते है। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है फसल में पानी के साथ जीवामृत देना जिस खेत में आप सिंचाई कर रहे हैं उस खेत के लिए पानी ले जाने वाली नाली के ऊपर ड्रम को रखकर वाल्व की सहायता से जीवामृत पानी मे डाले धार इतनी रखें कि खेत में पानी लगने के साथ ही ड्रम खाली हो जाए। जीवामृत पानी में मिलकर अपने आप फसलों की जड़ों तक पहुँचेगा। इस प्रकार जीवामृत 21 दिनों के अंतराल पर आप फसलो को दे सकते है। इसके अलावा खेत की जुताई के समय भी जीवामृत को मिट्टी पर भी छिड़का जा सकता है। किसान भाई इस तरल जीवामृत का फसलो पर छिड़काव भी कर सकते है। फलदार पेड़ो के लिए पेड़ों दोपहर 12 बजे के समय पेड़ो की जो छाया पड़ती है उस छाया के बाहर की कक्षा के पास 1.0-1.5 फुट पर चारों तरफ से नाली बनाकर प्रति पेड़ 2 से 5 लीटर जीवामृत महीने में दो बार पानी के साथ दीजिए। जीवामृत छिडकते समय भूमि में नमी होनी चाहिए।
जीवामृत का प्रयोग किसान भाई गेहूँ, मक्का, बाजरा, धान, मूंग, उर्द, कपास, सरसों,मिर्च, टमाटर, बैंगन, प्याज, मूली, गाजर आदि फसलो के साथ ही अन्य सभी प्रकार के फलदार पेड़ों में कर सकते हैं। इसका कोई नुकसान नही है।

घन जीवामृत बनाने की विधि
किसान भाईयो घन जीवामृत बनाने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है।

घन जीवामृत बनाने की विधि
किसान भाईयो घन जीवामृत बनाने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है।
1-  100 किलोग्राम देशी गाय का गोबर
2-  5 लीटर देशी गौमूत्र
3-  2 किलोग्राम गुड़
4-  2 किलोग्राम दाल का आटा
5-  1 किलोग्राम सजीव मिट्टी
ये सब सामग्री एकत्रित करके सबसे पहले 100 किलोग्राम देशी गाय का गोबर लें और उसमें 2 किलोग्राम गुड़ तथा 2 किलोग्राम दाल का आटा और 1 किलोग्राम सजीव मिट्टी डालकर अच्छी तरह मिश्रण तैयार कर लें। इस मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा गौमूत्र डालकर उसे अच्छी तरह मिलाकर गूंथ लें ताकि उसका घन जीवामृत बन जाये। अब इस गीले घन जीवामृत को छाँव में अच्छी तरह फैलाकर सुखा लें। सूखने के बाद इसको लकड़ी से ठोक कर बारीक़ कर लें तथा इसे बोरों में भरकर छाँव में रख दें। इस प्रकार बने घन जीवामृत को आप 6 महीने तक भंडारण करके रख सकते हैं।

घन जीवामृत को कैसे प्रयोग करे?
किसान भाईयो घन जीवामृत को हम किसी भी समय भूमि में दाल सकते है। खेत की जुताई के बाद इसका प्रयोग सबसे अच्छा होता है। जब हम भूमि में इसे डालते हैं तो नमी मिलते ही घन जीवामृत में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु कोष तोड़कर समाधि भंग करके पुन: अपने कार्य में लग जाते हैं। किसी भी फसल की बुवाई के समय प्रति एकड़ १०० किलोग्राम जैविक खाद और २० किलोग्राम घन जीवामृत को बीज के साथ बोइये। इससे बहुत ही अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। इस के प्रयोग से आप रासायनिक खादों से ज्यादा उपज ले सकते हैं। बीज बोते समय बोने का जो औजार है उसमे दो नलियों का बाउल लगाएं, एक बाउल से बीज बोयें और दूसरे बाउल से यह जैविक खाद और घन जीवामृत का मिश्रण डाले या आपके इलाके में बीज बोने की जो भी विधि हो, उससे ही इन दोनों की बुवाई करे।

जीवामृत के प्रयोग से होने वालेे लाभ
1-  जीवामृत पौधे को अधिक ठंड और अधिक गर्मी से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।
2-  फसलो पर इसके प्रयोग से फूलों और फलों में वृद्धि होती है।
3-  जीवामृत सभी प्रकार की फसलों के लिए लाभकरी है।
4-  इसमें कोई भी नुकसान देने वाला तत्व या जीवाणु नही है।
5-  जीवामृत के प्रयोग से उगे फल,सब्जी, अनाज देखने में सुंदर और खाने में अधिक स्वादिष्ट होते है।
6-  पौधों में बिमारियों के प्रति लड़ने की शक्ति बढ़ाता है।
7-  मिट्टी में से तत्वों को लेने और उपयोग करने की क्षमता बढ़ती है।
8-  बीज की अंकुरन क्षमता में वृद्धि होती है |
9-  इससे फसलों और फलों में एकसारता आती है तथा पैदावार में भी वृद्धि होती है।

जीवामृत का लगातार उपयोग भूमि पर क्या असर डालता है?
1-  किसान भाईयो जीवामृत के लगातार प्रयोग करने से भूमि में केचुआ और अन्य लाभदायक सूक्ष्म जीव जैसे- शैवाल, कवक, प्रोटोजोआ व  बैक्टीरिया इत्यादि में वृद्धि होती है जो पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
2-  भूमि की उर्वरा शक्ति मे वृद्धि होती है।
3-  भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में भी इसके प्रयोग से सुधार होता है जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है।
किसान भाईयो हमे अपने खेतों मे रासायनिक खादों को कम करके जैविक खादों को बढ़ावा देना चाहिए। जीवामृत तो खेती के लिए वरदान है। क्यू कि जब हम भूमि में जीवामृत डालते हैं, तब 1 ग्राम जीवामृत में लगभग 500 करोड़ जीवाणु डालते हैं। वे सब पकाने वाले जीवाणु होते हैं। भूमि तो अन्नपूर्णा है लेकिन जो है, वह पका हुआ नहीं है। पकाने का काम ये जीवाणु करते हैं। जीवामृत उपयोग में लाते ही इसके जीवाणु हर प्रकार के  अन्नद्रव्य (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, लोहा, गंधक, जिंक आदि) को पकाकर पौधों की जड़ों को उपलब्ध करा देते हैं। भूमि पर जीवामृत डालते ही एक और चमत्कार होता है, भूमि में करोड़ों केंचुए अपने आप काम में लग जाते हैं, उन्हें बुलाना नहीं पड़ता। ये केंचुए भूमि के अन्दर लगभग 15 फुट से खाद पोषक तत्वों से समृद्ध मिट्टी मल के माध्यम से भूमि की सतह के ऊपर डालते हैं, जिसमें से पौधे अपने लिए आवश्यक सभी खाद पोषक तत्व बड़ी ही सुलभता से चाहे जितनी मात्रा में ले लेते हैं। घने जंगलों में अनगिनत फल देने वाले पेड़ पौधे कैसे जीते हैं ? वे अन्नद्रव्य कहाँ से लेते हैं ? उन्हें केंचुए और सूक्ष्म जीव-जन्तु ही खिलाते और पिलाते हैं। इन केंचुओं के मल में मिट्टी से सात गुना ज्यादा नाइट्रोजन, नौ गुना ज्यादा फास्फोरस, ग्यारह गुना ज्यादा पोटाश, छह गुना ज्यादा कैल्शियम, आठ गुना ज्यादा मैग्नीशियम, व दस गुना ज्यादा गंधक होता है। यानि फसलों और फल पेड़-पौधों को जो जो चाहिए वह प्रचुर मात्रा में होता है। केंचुओं की विष्टा खाद तत्वों का महासागर है। जीवामृत डालने से केंचुए यह महासागर पेड़-पौधों की जड़ों को उपलब्ध कराते हैं। ये अनगिनत सूक्ष्म जीव-जन्तु और केंचुए तभी अच्छा काम करते हैं जब उन्हें भूमि के ऊपर 25 से 30 सेंटीग्रेड तापमान 65 से 70 प्रतिशत नमी और भूमि के अँधेरा और बायोमास मिलती है। इसे सूक्ष्म पर्यावरण या विशिष्ट पारिस्थतिकी भी कहा जाता हैं। जब हम भूमि पर आच्छादन डालकर भूमि को ढक देते हैं तब यह विशेष पर्यावरण अपने आप तैयार हो जाता है। हमें कुछ विशेष नहीं करना पड़ता।

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